आज़ादी से लेकर अबतक किसान MSP के भरोसे ही रहा है, सरकारें आई, किसान को हक़ दिलाने के नाम से केवल अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में गिनी चुनी फसलों पर ही MSP दी जो रूपये के गिरते हुए स्तर के कारण भारत में बढ़ती हुई दिखी मगर सच्चाई ये है कि किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उपयुक्त कदम कभी संजीदा तौर से उठाये ही नहीं गए|
पंजाब में रिकॉर्ड स्तर पर MSP खरीद होने से पंजाब के किसानो का फायदा नहीं बाकी राज्यों के किसानो का नुक्सान हुआ है
पंजाब में आढ़तियों किसानो के बीच गहरा रिश्ता है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय से ही राजस्थान समेत बाकि राज्यों से MSP पर खरीद बहुत ही असामान्य तरीके से हुई है, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार से भारी मात्रा में सस्ता अनाज खरीद कर पूंजीपतियों ने करोड़ों किसानो का नुक्सान किया है और व्यवस्था का दुरूपयोग किया है | केंद्र को केवल दबाव की राजनीती का शिकार न होकर पूरे देश में उपज के हिसाब से बराबर प्रतिशत हर राज्य से खरीद करनी चाहिए और जल्द से जल्द संपूर्ण फसल को MSP पर खरीदने की तैयारी कर लेनी चाहिए, जिससे देशभर के किसानो, खासकर राजस्थान के गरीब किसानो को फायदा मिले |
ज्यादा मेहनत कर बहुत कम MSP लेने वाले किसानो को संपूर्ण खरीद की गारंटी दे केंद्र
खेती कागजों में नहीं होती उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है, पंजाब में जितनी जमीन पर फसल होती है उससे दुगनी जमीन के इस्तेमाल करने पर भी राजस्थान का किसान उपज नहीं कर पाता | दुगनी जमीन के कारण दुगना डीज़ल लगता है, दुगना ट्रेक्टर का किराया लगता है, पानी की व्यवस्था पंजाब से चार गुना खर्चा करने पर होती है, मजदूर को दुगनी मजदूरी करनी पड़ती है, ये राजस्थान जैसे राज्यों के किसानो के लिए घोर अन्याय से कम नहीं है | केंद्र सरकार को न सिर्फ उपज के मुकाबले MSP खरीद का कोटा राज्यों के हिसाब से करना चाहिए बल्कि राजस्थान जैसे राज्यों को विशेष पैकेज देकर सम्पूर्ण फसल की गारंटी देनी चाहिए जिससे किसानो में आत्मविश्वास आये
राजस्थान जाट महासभा अध्यक्ष राजाराम मील क्या कहते हैं
किसान आंदोलन के शुरूआती दौर से ही आंदोलन की रूपरेखा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजाराम मील राजस्थान के प्रमुख व्यवसाई भी है जो किसानो से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं और कृषि की बारीकी समझते हैं | किसान आंदोलन में प्रदेश में प्रमुख रूप से जाटों के सामने आने के अलावा राजाराम मील के समर्थन की वजह से ज्यदातरः भीड़ जुटती है | कई स्वयंभू नेता अपने आप को किसान नेता घोषित कर अपने स्वार्थ के लिए किसानो के नाम से नित नए बयान देकर और बार बार पलटने की वजह से जाट किसानो में असमंजस की स्तिथि आ गई है | राजाराम मील को राजस्थान में जाटों के आरक्षण दिलवाने के लिए जाना जाता है जिसके बाद जाटों की स्तिथि राजस्थान में अभूतपूर्व रूप से सुधार में आई है | अच्छी बात ये है कि उस समय अटल बिहारी की सरकार थी और अब भी NDA की सरकार है | अटलजी ने सीकर में ही जाटों के आरक्षण की घोषणा की थी, उस समय सुभाष महरिया भी NDA के हिस्सा थे | आज भी केंद्र सरकार के पास सुनहरा मौका है कि राजा राम मील जैसे पुराने जाट नेताओं से वार्ता करें और जल्द से जल्द कुछ समाधान निकाले जिससे किसानो का भ्रम भी दूर हो और उन्हें आर्थिक तौर से मजबूती भी मिले |
महामहिम सतपाल मालिक भी कह चुके हैं किसानो को खाली हाथ नहीं भेजे सरकार , किसान भूलते नहीं
किसान गैर राजनैतिक होता है उसको सबसे पहले अपनी मेहनत का हक़ चाहिए, उसकी समस्या जिसने सुनी उसको वो भूला नहीं और जिसने किसान को खाली हाथ लौटाया उस दर पर किसान दोबारा गया नहीं | राजस्थान में किसान की लागत पेट्रोल डीजल में तेजी के चलते कई गुना बढ़ती जा रही है जिसका असर पंजाब हरयाणा से दुगना ज्यादा राजस्थान का पहले से गरीब किसान झेल रहा है और कीमतें कम न हुई तो वो खेती ही नहीं कर पायेगा, हर राज्य के किसानो की अपनी अलग परेशानी है, इसको समझना केंद्र सरकार के लिए जरुरी है, पेट्रोल डीजल के दाम कम न किये तो किसानो को जमीन के हिसाब से सब्सिडी पर पेट्रोल डीजल उपलब्ध करवाए या उपज के हिसाब से अलग अलग प्रकार के इंसेंटिव राज्यों की कैलकुलेशन करके देने की व्यवस्था करे | कुछ भी करे मगर किसानो को खाली हाथ न भेजे, ये लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है और राजनैतिक रूप से भी ठीक नहीं है क्यूंकि एक डिसिशन के एफेक्ट कई चुनाव में देखे जा सकते हैं
केवल MSP फसलों पर किसानो की निर्भरता कम करने की कोशिशें हों
जो किसान MSP फसलों की ही खेती करते हैं उनकी हालत नॉन MSP फसल और सब्जियां उगाने वाले किसानो से बहुत ज्यादा ख़राब है | फल सब्जियों, आर्गेनिक फार्मिंग में कम जमीन पर ज्यादा रीटर्न मिलता है मगर इसका मार्किट व्यवस्थित नहीं है जबकि इसकी डिमांड विदेशों में भी बहुत ज्यादा है | मशरूम खेती करने वाले किसान कुछ एकड़ से ही करोड़ों रूपये कमा रहे हैं, बाकी भी ऐसा करना चाहते हैं मगर जानकारी, सुविधा और मार्किट से डरते हैं | कृषि नीति को कागजों में बनाना और जमीन पर उतारने में बहुत अंतर है | ठोस कदम उठाये सरकार जिससे किसान ही नहीं देश की अर्थव्यवस्था सुधरे
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