बेनीवाल खुद इस बात को हर जगह घूम घूम कर गर्व से कहते हैं कि उनकी पार्टी के चुनाव लड़ने की वजह से केवल कांग्रेस को नुक्सान हुआ है नहीं तो कांग्रेस की कम से कम पचास सीटें और आती, हालाँकि उनके पचास के दावे ग्राउंड पर केवल बारह सीटों के दावे पर ही फिट बैठती है मगर उनके समर्थक इस बात से बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखते
RLP की वजह से नुक्सान हुआ था तो अब कांग्रेस का डैमेज कण्ट्रोल होना तय है
लॉजिक में यकीन नहीं रखने वाले शायद ये माने बैठे हैं कि जहाँ RLP चुनाव नहीं लड़ेगी वहां के वोटर या तो वोट ही नहीं देंगे या नोटा को वोट देंगे जिसकी वजह से वोट प्रतिशत प्रभावित नहीं होगा| बेनीवाल जिस प्रकार कांग्रेस और भाजपा को गप्पू पप्पू कहकर कोसा करते थे उससे कई लोग उन्हें विकल्प की तरह देख रहे थे अब उनके उसी पार्टी से गठबंधन होने पर जिनके नेता को बेनीवाल गप्पू कहते थे कई लोगों को हैरान कर गया मगर विशेषज्ञ मानते हैं ये पहले से ही फिक्स था
विधान सभा में केवल 3 सीटें जीतने वाली RLP कांग्रेस से 7 सीटें मांग रही थी
कांग्रेस से बहुत बड़ी कीमत माँगने पर ये बात सिद्ध है कि गठबंधन नहीं करना था मगर जब सात सीटें मांगी गई थी तो राष्ट्रहित कहाँ था ये बड़ा प्रश्न है | अगर कोई विचारधारा को इलेक्शन में हथियार बनाकर फ्लोट करना होता है तो उसकी सही प्रकार से फील्डिंग करी जानी चाहिए जो कि नहीं की गई | क्या कांग्रेस सात सीटें दे देती तो राष्ट्रहित का मुद्दा विचारधारा नहीं रहता ये सभी के मन में है
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