सीकर : जब भी स्वामी सुमेधानंद कहीं भी सभा या अन्य प्रोग्राम कर रहे हैं तो जिले के सभी कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया पोर्टलों को पूरी जानकारी मिल रही है इसके अलावा भाजपा के कार्यकर्ता भी हर गतिविधि के दस दस मैसेज डालते हैं वहीँ सुभाष महरिया की टीम इस मामले में कहीं दिखाई ही नहीं देती, डिजिटल जमाने में पुराने ज़माने के तौर तरीके कितना नुक्सान करा चुके हैं ये 2014 में दिख चुका है| हद इस बात की है कि उनके ऑफिस जाकर बोल आओ तो भी उनके असिस्टेंट सुस्ती दिखाते हैं, इसके बाद उनको किसी सभा की कवरेज नहीं मिलती तो कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि आप फलां बड़ा इवेंट कवर करने क्यों नहीं गए जबकि पिछले दो साल में भाजपा की कोई ऐसी गतिविधि नहीं गई है जहाँ मैसेज और व्हाट्सउप ने मेमोरी फुल न कर दी हो
सोशल मीडिया दस गुना ज्यादा ताकतवर है प्रिंट से
रामफळ गांव में रहते हैं जो सुबह सुबह अख़बार में पांच से दस सेकंड के लिए एक महंगा विज्ञापन देखते हैं उतने ही देर में उनके पास सोहनलाल का व्हाट्सअप वीडियो आता है जिसको वो दो से तीन मिनट देखते हैं काफी लम्बी इनफार्मेशन लेते हैं साथ ही आगे भी फॉरवर्ड करते हैं, शाम को चौपालों में ऐसे ही वीडियो और अन्य अपडेटेड जानकारी को लेकर गांव वालों के साथ जोर आजमाइश होती है और उसका पलड़ा भारी रहता है जिसके पास सबसे नयी जानकारी होती है, धीरे धीरे रामफळ का भी उस नेता की तरफ ज्यादा झुकाव हो जाता है जिसकी ज्यादा जानकारी वो रखता है और रामफळ जब किसी और से जब मिलता है जिसके पास रामफळ से कम जानकारी होती है तो जानकारी साझा कर रामफळ ख़ुशी फील करता है | यही वजह है कि सोशल मीडिया ने प्रिंट को बुरी तरह उखाड़ दिया है और पुराने तौर तरीके अपनाने वाले नेता लुप्त हो रहे हैं
सुमेधानंद के अनगिनत सोशल मीडिया मैनेजर
एक बड़ा अंतर बिलकुल साफ़ है कि स्वामी सुमेधानंद मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं जिनके प्रशंसक युवा वर्ग ज्यादा है और उत्साह ऐसा है कि हर कोई बढ़ चढ़कर व्हाट्सप्प फेसबुक पर हर गतिविधि शेयर कर रहा है जिसकी वजह से सोशल मीडिया पर सक्रिय हर पोर्टल,पेज और इंडिपेंडेंट प्रोफाइल के पास मुद्दे और उनके कार्यों की भरमार है वहीँ ऐसा लगता है जैसे महरिया की टीम डिजिटल प्रचार के लिए अपने हाथ बांधे चुप है | महरिया के आस पास वालों से दूसरे मीडिया की बुराई, चुगली ज्यादा सुनने को मिलती है न कि महरिया की उपलब्धियों और आने वाले समय में उनकी क्या भूमिका रहेगी इस बात की
भाजपा आईटी सेल बनाम कांग्रेस आईटी सेल
दोनों सेलों में तो कोई ख़ास अंतर नज़र नहीं आता क्यूंकि पिछले दो साल में भाजपा के अधिकृत आईटी सेल वाले भी उतने ही सक्रिय या निष्क्रिय दिखे जितने कांग्रेस के मगर भाजपा के पास ऐसे कार्यकर्ता हैं जो आईटी सेल से सीधे तौर पर जुड़े नहीं हैं मगर उनके प्रोफाइल अपने नेता का ताबड़तोड़ प्रचार करते दिखे हैं, ये मुमकिन है कि बड़े कार्यकर्ता भी कंफ्यूज हों कि अधिकृत कौन है और कौन नहीं | जहाँ भाजपा आईटी सेल को केंद्र और राज्य से दिशा निर्देश मिलते दीखते हैं वहीँ कांग्रेस आईटी सेल को मिलते होंगे इसमें संशय है |
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