सीकर : महरिया का चुनाव में आना पिछले दो साल की प्लानिंग है, साथ ही कांग्रेस ने सभी आठों सीटों पर भाजपा को 8-0 की करारी हार देकर अपना मनोबल बढ़ा लिया है मगर इसके साथ अन्य फैक्टर जो निकलकर सामने आ रहे हैं और पिछले एक महीने में जमा किये हैं वो जानिये
कांग्रेस की सरकार में भाजपा का सांसद कितना विकास कर पायेगा ?
सीकर का वोटर अत्यंत राजनैतिक है, चौपालों पर बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के वोटरों का राजनैतिक दृष्टिकोण कितना विकसित है, फ़िलहाल कांग्रेस की सरकार ही नहीं बल्कि जिले के सभी विधायक कांग्रेस के ही हैं ऐसे में यहाँ के लिए राज्य की तरफ से कई योजनाएं व्यापक रूप से पहुँचने के लिए तैयार दिखाई देती हैं मगर साथ ही यहाँ पर अगर भाजपा का सांसद हो जाता है तो सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की वो इस एरिया के लिए कुछ बड़े फायदे लेकर आने में सक्षम कम ही रहेगा, अगर भाजपा की सरकार आती है तो वो कांग्रेस के एरिया में ज्यादा कुछ देने से भेदभाव कर सकती है और कांग्रेस की आती है तो भाजपा सांसद के साथ सौतेला व्यवहार कर सकती है | कमाल की बात है ये बातें चौपाल पर होती हैं तो गांव में इसका असर तगड़ा रहने वाला दीखता है
सुभाष महरिया निर्दलीय भी दो लाख वोटरों की पसंद रह चुके हैं
सुभाष महरिया के निजी कांटेक्ट यहाँ की जनता से काफी सुदृढ़ हैं, कायमखानी समाज के अस्सी वर्षीय रउफ बताते हैं कि जब महरिया मंत्री था तो भी जाते ही हमारा काम हो जाया करता था जबकि अन्य विधायक के चमचे उनको बाहर से ही टरका दिया करते थे, महरिया को अपनेपन से केवल "सुभाष" नाम से कई किस्से सुनाये और साथ ही अन्य जनता भी महरिया के लिए जमकर पक्ष लेने जैसी दिखी (वीडियो सीकर टाइम्स यूट्यूब चैनल पर आएगा )
कांग्रेस के पी सी जाट पिछले चुनाव में मोदी लहर के बीच ले गए वोट
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पी सी जाट पिछली बार सांसद का चुनाव लड़े थे और मोदी लहर होने के बावजूद दो लाख साठ हज़ार वोट लेने में कामयाब हुए थे | जाट का बहुत ज्यादा जनसम्पर्क नहीं होकर मैनेजमेंट के खिलाडी हैं, लोकल फैक्टर के अलावा जाट का मैनेजमेंट इस बार सीकर में सभी आठों सीटें कांग्रेस के पाले में गई, जाट ने कभी किसी कंट्रोवर्सी में न पढ़कर किसी की चुभती बात का रिएक्शन नहीं दिया जिसकी वजह से जिले में कांग्रेस लीडरों के बीच घर्षण बहुत कम हुआ और एकजुट पार्टी चुनाव निकाल लेती है ये सभी को पता है
भाजपा के सभी विधायक टिकट की आस में थे
जहाँ कांग्रेस के सभी विधायक अपनी अपनी सीटें जीतकर निश्चिन्त हैं और चाह रहे हैं कि सांसद भी उनका ही बन जाए तो जिले में एकछत्र राज हो जाए वहीँ भाजपा के सभी विधायक टिकट की लाइन में थे और अपनी करारी हार का ठीकरा नीतियों को नहीं सुमेधानंद को दे रहे थे ऐसे में पार्टी के अंदर मचा घमासान हर कार्यकर्ता को पता है और इससे कार्यकर्ताओं का भी मनोबल डाउन है | अगर सुमेधानंद चुनाव जीत जाते हैं तो विधायकों को अगले चुनाव में पार्टी के सवालों का सामना करना पड़ सकता है कि सांसद कैसे जीता और विधायक कैसे हारे | इसके चलते कइयों की टिकट कट सकती है
सुमेधानंद के खिलाफ जनता नहीं है मगर पक्ष में भी नहीं है
सुमेधानंद की सबसे बड़ी दावेदारी जिस वजह से है वही वजह उनके खिलाफ है, सीकर की जनता में सुमेधानंद एक जाना पहचाना नाम हैं मगर साथ ही वो राजनीती की खींचतान, घाटे मुनाफे से दूर होकर सबको सामान रखने की नीति से चल रहे हैं जिसकी वजह से विपक्षियों में उनकी ज्यादा खिलाफत नहीं है मगर खुदके कार्यकर्ता उनसे फायदे के काम नहीं करवाने का आरोप लगाते रहते हैं, इन समीकरणों के चलते सुमेधानंद का नाम सिर्फ मोदी के चुनाव के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है | पार्टी की रणनीति हो सकती है कि लोकल फैक्टर के बजाय मोदी फैक्टर पर चुनाव केंद्रित हों और उसके लिए सुमेधानंद के अलावा कोई नाम जिले में था ही नहीं | यह रणनीति समीकरणों को देखते हुई सटीक लगती है और ऐसा भी माना जा सकता है कि जीतें या हारें, जितने वोट सुमेधानंद के नाम पर भाजपा इन चुनावों में ले जायेगी वो किसी और नाम पर ले ही नहीं जा सकती थी
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