सीकर: हद हो जाती है जब डींगे मारने वाले अखबार का संपादक तक यह नहीं जानता कि वोट बैंक और वोट प्रतिशत अलग अलग होते हैं और दोनो में जमीन आसमान का अंतर है। केवल अनुभवी ही नहीं गाँव के बच्चे बच्चे को पता है कि वोट प्रतिशत का मतलब होता है कि अगर सौ वोट पड़े तो उनमे से कितने वोट उम्मीदवार को गए। वोट बैंक शब्दावली उस मतदाता को जाता है जो पारंपरिक तौर पर एक ही पार्टी या एक ही उम्मीदवार को वोट देता है चाहे कैसा भी समीकरण हो। खबर में टोटल वोट का उल्लेख है जो वोट बैंक नहीं कहलाता। अगर इतनी छोटी छोटी बातें, कंटेंट राइटर और उसके बाद कंटेंट को वैट करने वाले संपादक नहीं पता होता तो ये साफ़ तौर पर ऐसे अखबार और ऐसे कर्मचारियों का स्तर बताता है जो हमेशा मैनेजमेंट की चापलूसी के बूते प्रमोशन पाते हैं और असली पत्रकारिता से इनका दूर दूर तक नाता नहीं रहता। स्पेलिंग मिस्टेक सभी अखबार में होती रहती है और सामान्य बात है पर कॉन्सेप्ट ही पूरा गलत केवल यहीं देखने को मिला।
यह भी जाने कि भास्कर में सीकर के चुनावी मुद्दों के लेख में यह छपा था कि स्मृति वन इस बार के चुनाव में प्रमुख मुद्दा है जिसे पढकर जिले भर के मतदाताओं ने अपना सर पीट लिया था।
जाने किस कदर पाठक ऐसी खबरों को देखकर रिऐक्ट करते होंगे जब भास्कर में बस का आधा टायर डूबे की फोटो दिखाकर हैडिंग बनाई जाती है कि छह फीट पानी भर गया और स्कूटी का आधा टायर डूबने पर चार फीट पानी हो जाता है।
पत्रकारिता की लाज हमेशा से पत्रिका ने बचाई है जिसमें साफ छपता रहता है कि फलां स्कूल या फलां कॉलेज में यह घटनाक्रम हो गया वहीं भास्कर में अक्सर निजी स्कूल और निजी कॉलेज लिख कर पहचान ही गायब कर दी जाती है और सरकारी स्कूल, सरकारी कॉलेज का ही नाम उजागर किया जाता है। जान लें कि सरकारी स्कूल कॉलेज विज्ञापन भी नहीं देते और किसी की जेब भी गरम नहीं करते।
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