सामान्य सी बात कभी कभार बड़े सामप्रदायिक घटनाक्रम में बदल जाती है और बेमतलब उन्माद का कारण बन जाती है। ऐसे ही हैं पेम्पलेट और अखबार में छपे देवी देवता की फोटुओं वाले विज्ञापन
रामनवमी पर राम का नाम लिखी सामग्री हटाने पर हुआ था विवाद
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, शहर भर में राम नवमी धूमधाम से आयोजित की गई थी जिसमे अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाकर सामप्रदायिक माहौल सौहार्दपूर्ण बनाने की कोशिश में नगर परिषद सभापति जीवन खॉं भी मौजूद थे मगर दो हफ्ते बाद सफाई कर्मचारियों द्वारा सड़क किनारे लगी राम नाम की सज्जा सामग्री हटाने पर बवाल हो गया और राम नाम के कागज को सड़क पर पड़ा होने से भक्तों में रोष व्याप्त हो गया। उन्ही भक्तों के दिमाग में कभी यह नहीं आया कि अखबारों में देवी देवता की फोटो के साथ विज्ञापन, बधाई संदेश छपेंगे और उस अखबार को किसी ने खाना खाने, गाड़ी की शीशा साफ करने या अन्य किसी सामान्य कार्य में इस्तेमाल ले लिया और उनकी नजर उसपर गई तो धार्मिक भावनाऐं किसके खिलाफ उबाल मारेंगी?
दीवाली आने पर आपराधिक बैक्ग्राउंड वाले लोग भी फ्री में लक्ष्मीजी गणेशजी की फोटुऐं बांटते हैं
अगर आप धार्मिक हैं तो क्या आपके मन में कभी विचार आया है कि जिस फ्री के पेम्प्लेट को आप लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल करते हैं उसको क्या सौ फीसदी ईमानदारी के धन से कमाकर आपको धर्मार्थ उप्लब्ध कराया गया है या जानबूझकर किसी टोटके के अंतर्गत विज्ञापन का नाम लिखकर देवी देवता की फोटो के साथ विज्ञापनदाता की पूजा करा दी जाती है।
मुस्लिम परिवार क्या करे देवी देवता की जबरन भेजी गई फोटो का?
यह सवाल ही गलत है क्योंकि असल सवाल तो यह है कि देवी देवता की फोटो किसी मुस्लिम के घर जबरन डालना ही भावना के साथ खिलवाड़ है, उसके बाद यदि किसी बच्चे आदि ने उसके साथ खेलते हुए मासूमियत में कुछ कर दिया तो सोशल मीडिया पर धार्मिक उन्माद फैलाने वालों को सौहार्द बिगाडने में एक पल नहीं लगेगा।
सरकार बुद्धिजीवी क्यों चिंतित नहीं है?
अखबारों के पास सबसे कमाई का सीजन बाकी व्यापारों की तरह दीवाली का ही होता है तो खुदके व्यापार पर कोई क्यूं विवाद उठाएगा और जबतक प्रेस किसी चीज को मुद्दा नहीं मानती तब तक न सरकार को कोई चिंता नहीं है न ही सामान्य नागरिक को, इसके उलट अपने आप को धर्म का ज्ञाता, प्रकांड पंडित कहने वालों के खुदके पूजास्थल में इन विज्ञापन वाले पेम्पलेट दिख जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। क्या हल्का सा दाग धब्बा लगे होने पर यही विद्वान किसी वस्तु को पूजा का हिस्सा बनने से नहीं रोकते जो इतने बड़े विज्ञापनदाताओं के नाम वाले पेम्पलेट की पूजा तक कर देने पर ध्यान नहीं देते। लक्ष्मी पूजन के समय लाखों रुपये और जेवरात रखकर पूजा करने वालों को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिये कि लक्ष्मीजी की फोटो पेम्पलेट कम से कम दोषरहित हो उसपर किसी विज्ञापनदाता का नाम नहीं हो और खुद के पैसों से खरीदी हुई हो।
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