खो नागौरीयान में एक नया मामला उस समय उपज गया जब भगवान परशुराम के शोभायात्रा में ब्राह्मणों ने फरसे लहराए। एक एस एच ओ को ग़ुस्सा आ गया और उसने फरसा छीन लिया जिसके बाद बवाल हो गया और ब्राह्मणों ने एस एच ओ से सरेआम माफ़ी मंगवायी जबकि SHO तो सिर्फ़ अपनी ड्यूटी कर रहा था। बात इतनी बढ़ी कि नेशनल मीडिया तक पहुँच गई। बता दें कि खोनागौरियान जयपुर का एक मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ा है और यहाँ पर ताजिये के दौरान जमकर धारदार हथियारों का प्रदर्शन होता है जिस पर भी पूरी तरह पाबंदी है। वैसे ताजिये के दौरान सिर्फ़ खोनागोरियान ही नहीं बल्कि देश भर में हर जगह धारदार हथियारों का बेख़ौफ़ प्रदर्शन होता है जिसमें छोटे छोटे बच्चों के हाथ में भी धारदार हथियार देखे जा सकते हैं।
ये दोनों मामले दिखाते हैं कि पुलिस क़ानून व्यवस्था संभालने में पूरी तरह लाचार है और ऐसे बड़े आयोजनों के दौरान उसकी कोई इज़्ज़त नहीं है। सीकर में भी हमने लाइव दिखाया था कि किस प्रकार ताजिये के दौरान पुलिस बल के भारी बंदोबस्त के बीच भी हथियार चल रहे थे और पुलिस आंखें बंद कर चुपचाप खड़ी थी और कल ही फरसा यात्रा भी निकली है जिसका भी वीडियों हमने अपलोड किया है। फरसा यात्रा के दौरान इतनी तसल्ली थी कि बच्चों के हाथ में हथियार नहीं दिखाई दे रहे थे। वही ताज़िया के दौरान भी बच्चों के हाथ में न सिर्फ़ तेज धारदार हथियार थे बल्कि उन्हें बच्चे नादानी में हवा में लहरा रहे थे कभी ज़मीन पर पटक रहे थे और भीड़ में कब किसके गले पर हथियार चल जाए क्या पता पड़ता है। बच्चों से तो ये सब नादानी में हो जाता है मगर समुदाय के जो बड़े नागरिक होते हैं उन सबकी आँखों पर पड़ी धर्म की पट्टी क़ानून की धज्जियाँ उड़ाती है।
अब सवाल ये है की तुष्टिकरण की राजनीति के आगे संविधान द्वारा स्थापित मूल्य कब तक अपमानित होते रहेंगे। पहले सिर्फ़ ताजिये के दौरान ही क़ानून की धज्जियां उड़ती थी अब ब्राह्मण रैली मे भी यह काम सरेआम होना अफ़सोस जनक है। मोहर्रम के दौरान भी हथियारों की नुमाइश उसके लहराने पर पूरी तरह प्रतिबंध है मगर पाबंदी सिर्फ़ काग़ज़ों में है। सीकर में ताजिये के दौरान तो एक पुलिस कॉन्स्टेबल को बुरी तरह से धारदार हथियारों से मारा पीटा भी गया था जिसे किसी नेशनल मीडिया ने कवर नहीं किया था मगर एक पुलिस वाले से माफ़ी मंगवाने पर यह रिपोर्ट आज तक पर चल रही है वो ही अच्छी बात है।
यहाँ पर ये भी बता दें कि अपनी रिपोर्ट में आज तक चैनल ने फरसा यात्रा को दलित यात्रा की आड़ में रिपोर्ट करते हुए अपनी रिपोर्ट दिखाई जिसे सईद अनवर ने पेश किया मगर हैरानी की बात ये है कि एक बार भी आज तक चैनल ने ताजिये का नाम तक नहीं लिया जो पूरी तरह रिपोर्ट को एक तरफ़ा बनाने की कोशिश लगी। या तो आज तक एक डरपोक चैनल है या आजतक चैनल में से किसी भी सम्पादक में कभी ताजिये मैं हिस्सा ही नहीं लिया है और उन्हें पता ही नहीं है।
चाहे ब्राह्मणों पर ही नकेल कसना चाहे मीडिया मगर जितना मीडिया कर रही है उतना ही उसके बस में है। अगर दो-चार फ़रसे लहराने पर ही भीड़ को क़ाबू में नहीं किया गया तो अगली यात्रा में और ज़्यादा फरसे निकल सकते हैं। हिंदुओं की शोभा यात्रा में महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार मिलता है इसलिए इनमें हथियारों का लहराना ग़ैरक़ानूनी ही नहीं अनुचित भी है।
एक टिप्पणी भेजें