मुख्यमंत्री का एक फ़ैसला किसानों के लिए बहुत बड़ी राहत की ख़बर लेकर आया है साथ ही सरकार द्वारा किए गए वायदों की कड़ी में एक वायदा और पूरा करने के साथ मुख्यमंत्री की साख कई गुना बढ़ गई है|
हालिया फ़ैसले में सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर ख़रीदे जाने वाली फ़सल को 25 क्विंटल से बढ़ाकर प्रतिदिन 40 क्विंटल कर दिया गया है। अब तक का यह सबसे बड़ा फ़ैसला है जिसके चलते लाखों किसान अपनी फ़सल का उचित मूल्य ले पाएंगे |
राजनैतिक किसान आन्दोलन हुआ था सीकर में
देखने में आया था कि सीकर में किसान आंदोलन को राजनैतिक पार्टियां हवा देकर अपनी सीट बनाने में लगी हुई थी इसी क्रम में मुख्यमंत्री की शव यात्रा तक निकाली गई और DJ पर उनके ख़िलाफ़ बेहुदा कमेंट्स भी करे गए। ऐसा करते समय राजनैतिक नेता जो किसान बनकर उस समय रैली में मौजूद थे हंस रहे थे। मुख्यमंत्री को पूरी रिपोर्ट होने के बावजूद उन्होंने अपने ऊपर की गई सभी टिप्पणियों को ख़ारिज कर दिया और बड़प्पन दिखाते हुए उन राजनेताओं से मुलाक़ात भी की, जिसमें राजनेताओं को अपने किए पर पछतावा होता दिखा | राजनेताओं ने जिस महिला मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ टिप्पणियां की थी शव यात्राएँ निकाली थी वही मुख्यमंत्री उनके सामने खड़ी थी और बिना द्वेष भावना के बिना उनसे बात कर रही थी। अगर मुख्यमंत्री चाहती तो समय देती ही नहींक्या जवाब दिया राजनेताओं ने जब उनकी तसवीरें सामने आई
अक्सर जो राजनेता गाँव में, सभाओं में भर भरकर मुख्यमंत्री को कोसते थे, उनको पोपाबाई के नाम से संबोधित करके अपमानित करने की कोशिश करते थे जब उनपर किसानो के सामने अपनी दबंग छवि को बट्टा लगता दिखा तो पहले उन्होंने फोटों को ही नकार दिया मगर हर जगह से फोटों की सत्यता की पुष्टि होता देख तुरंत अपना स्टैंड बदला और अपने मुखपत्रों में इसे मुख्यमंत्री से मिलने के प्रोटोकॉल का हवाला दे दिया साथ ही सभाओं में कहा कि जब दो बड़े नेता मिलते हैं तो हाथ जोड़कर ही मिलते हैं। हैरानी की बात है कि विराट बहुमत के साथ आयी पार्टी की सबसे बड़ी नेता के सामने एक भी सीट नहीं ले पाई पार्टी का चुनाव हारा हुआ विधायक इस प्रकार अपने आप को मुख्यमंत्री के बराबर बतला रहा है और डींगें मार रहा है। सोशल मीडिया के ज़माने में पोल खुलने में बिलकुल भी देर नहीं लगती
आन्दोलन किसान का नहीं राजनेतिक था : खुद स्वीकार लिया माकपा ने
अबतक सीकर और महाराष्ट्र के किसान आन्दोलन को माकपा से सम्बंधित नहीं होना का दिखावा करती पार्टी के उस समय सीकर टाइम्स ने पोल खोल दी जब उनकी पार्टी की मीटिंग में किसान सभा के सभी कार्यक्रमों और उपलब्धियों को बयान करते माकपा लैटर हेड पर ध्यान आकर्षित करवाया | साफ़ तौर पर माकपा ये स्वीकार कर चुकी है कि किसान आन्दोलन असल में माकपा का ही आन्दोलन था, जिसका आने वाले चुनावों में भी वोट के लिए इस्तेमाल किया जाएगा यहाँ पढ़ें वो खुलासा करती रिपोर्टसरकार ने सहकारी बैंकों के कर्ज़दार किसानों को दी सौग़ात
राजनेता काफ़ी ज़ोर शोर से किसानों के कर्ज़ माफ़ी को लेकर भी बड़े बड़े बयान दे रहे हैं और ये बात सही भी है कि हर किसान के औसतन 5 सौ रुपया माफ़ हो भी गए हैं। एक अख़बार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ सीकर ज़िले के 1,20,000 किसानों का पाँच करोड 50 लाख रुपया का कर्ज़ माफ़ होगा। अगर औसत निकाला जाए तो प्रति किसान 5 सौ रुपये के आस पास ही बैठता है। किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाली राजनैतिक पार्टी इसे बड़ी जीत बता रही है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने सोशल मीडिया पर भी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए पोस्ट की और एक लाख बीस हज़ार किसानो को पांच करोड़ पचास लाख का ओसत 500 रुपये से भी कम को कर्ज़ा माफ़ी की जीत मानी | ध्यान दें ये पोस्ट किसान सभा की नहीं माकपा की है |
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