विकास दर में तेजी लाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। सरकार की कमान संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तमाम संपन्न देशों की यात्राएं कीं और वहां बसे भारतीयों का यहां आकर कारोबार शुरू करने के लिए आह्वान किया।
विकास दर में तेजी लाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। सरकार की कमान संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तमाम संपन्न देशों की यात्राएं कीं और वहां बसे भारतीयों का यहां आकर कारोबार शुरू करने के लिए आह्वान किया। विदेशी कंपनियों के कारोबार में आने वाली रुकावटों को दूर करने का भी प्रयास किया। मगर सरकार के साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी अपेक्षित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं जुटाया जा सका। नोटबंदी और जीएसटी के बाद विकास दर की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। जबकि सरकार का लक्ष्य इसे आठ फीसद तक पहुंचाना है, पर वह संभव नहीं दिख रहा। महंगाई पर काबू पाना भी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के मकसद से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी कंपनियों के लिए एकल ब्रांड खुदरा कारोबार और भवन निर्माण के क्षेत्र में सौ फीसद निवेश का रास्ता खोल दिया है। खुदरा कारोबार में अभी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा उनचास फीसद थी। उससे अधिक के लिए सरकार से इजाजत लेनी पड़ती थी। इसके अलावा विमानन क्षेत्र में भी उनचास फीसद निवेश की छूट मिल गई है। माना जाहालांकि कुछ मजदूर संगठनों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे देसी कंपनियों के कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका तर्क है कि भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का विरोध किया था, इसलिए भी यह फैसला असंगत जान पड़ता है। जबकि सरकार की चिंता इस बात को लेकर है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिए बगैर विकास योजनाओं को गति प्रदान नहीं की जा सकती। स्मार्ट सिटी बनाने, स्वच्छ भारत और वस्तुओं की कीमतें तर्कसंगत बनाने का सपना अधूरा रह जाएगा। माना जाता है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों को संतुलित बनाने में सफलता मिलती है। दूरसंचार कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के नतीजे सामने हैं। इसी तरह प्रतिस्पर्द्धा से खुदरा वस्तुओं की कीमतों में कमी लाने की उम्मीद बनती है। विदेशी कंपनियों के आने से विमानन के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी। मगर इससे कितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ेगा, जिससे दूसरे क्षेत्रों की सुस्ती मिटाने में मदद मिलेगी, कहना मुश्किल है।
भारत जैसे देशों के सामने बड़ी चुनौती अपने उत्पादों के लिए बाजार तलाशना है। उत्पादन के क्षेत्र में यहां संतोषजनक तरक्की दिखती है, पर निर्यात के मामले में स्थिति बहुत खराब है। विदेशी बाजार में अपने उत्पादों के लिए जगह बना पाना कठिन काम बना हुआ है। जबकि विदेशी कंपनियों ने हमारे बाजार का काफी हिस्सा छेंक रखा है। आयात की दर निर्यात के मुकाबले काफी अधिक है। ऐसे में खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों के लिए सौ फीसद निवेश की छूट से बाजार में देसी कंपनियों और उत्पादकों के लिए और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कीमतें नियंत्रित करने के लिए विदेशी वस्तुओं से बाजार को पाट देना कोई अंतिम उपाय नहीं माना जाता। संतुलित विकास दर के लिए देसी कारोबार को बढ़ावा देना भी जरूरी होता है। पहले ही हमारे यहां छोटे और मंझोले कारोबार कठिनाइयों से गुजर रहे हैं। विदेशी कंपनियों के लिए निर्बाध रास्ता खोल देने से उनकी मुश्किलें और बढ़ेंगी। ऐसे में विदेशी के साथ-साथ देसी कंपनियों के लिए जगह बनाने के व्यावहारिक उपाय तलाशने की अपेक्षा स्वाभाविक है। रहा है कि इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की दर में बढ़ोतरी होगी।
विकास दर में तेजी लाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। सरकार की कमान संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तमाम संपन्न देशों की यात्राएं कीं और वहां बसे भारतीयों का यहां आकर कारोबार शुरू करने के लिए आह्वान किया। विदेशी कंपनियों के कारोबार में आने वाली रुकावटों को दूर करने का भी प्रयास किया। मगर सरकार के साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी अपेक्षित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं जुटाया जा सका। नोटबंदी और जीएसटी के बाद विकास दर की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। जबकि सरकार का लक्ष्य इसे आठ फीसद तक पहुंचाना है, पर वह संभव नहीं दिख रहा। महंगाई पर काबू पाना भी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के मकसद से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी कंपनियों के लिए एकल ब्रांड खुदरा कारोबार और भवन निर्माण के क्षेत्र में सौ फीसद निवेश का रास्ता खोल दिया है। खुदरा कारोबार में अभी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा उनचास फीसद थी। उससे अधिक के लिए सरकार से इजाजत लेनी पड़ती थी। इसके अलावा विमानन क्षेत्र में भी उनचास फीसद निवेश की छूट मिल गई है। माना जाहालांकि कुछ मजदूर संगठनों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे देसी कंपनियों के कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका तर्क है कि भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का विरोध किया था, इसलिए भी यह फैसला असंगत जान पड़ता है। जबकि सरकार की चिंता इस बात को लेकर है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिए बगैर विकास योजनाओं को गति प्रदान नहीं की जा सकती। स्मार्ट सिटी बनाने, स्वच्छ भारत और वस्तुओं की कीमतें तर्कसंगत बनाने का सपना अधूरा रह जाएगा। माना जाता है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों को संतुलित बनाने में सफलता मिलती है। दूरसंचार कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के नतीजे सामने हैं। इसी तरह प्रतिस्पर्द्धा से खुदरा वस्तुओं की कीमतों में कमी लाने की उम्मीद बनती है। विदेशी कंपनियों के आने से विमानन के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी। मगर इससे कितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ेगा, जिससे दूसरे क्षेत्रों की सुस्ती मिटाने में मदद मिलेगी, कहना मुश्किल है।
भारत जैसे देशों के सामने बड़ी चुनौती अपने उत्पादों के लिए बाजार तलाशना है। उत्पादन के क्षेत्र में यहां संतोषजनक तरक्की दिखती है, पर निर्यात के मामले में स्थिति बहुत खराब है। विदेशी बाजार में अपने उत्पादों के लिए जगह बना पाना कठिन काम बना हुआ है। जबकि विदेशी कंपनियों ने हमारे बाजार का काफी हिस्सा छेंक रखा है। आयात की दर निर्यात के मुकाबले काफी अधिक है। ऐसे में खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों के लिए सौ फीसद निवेश की छूट से बाजार में देसी कंपनियों और उत्पादकों के लिए और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कीमतें नियंत्रित करने के लिए विदेशी वस्तुओं से बाजार को पाट देना कोई अंतिम उपाय नहीं माना जाता। संतुलित विकास दर के लिए देसी कारोबार को बढ़ावा देना भी जरूरी होता है। पहले ही हमारे यहां छोटे और मंझोले कारोबार कठिनाइयों से गुजर रहे हैं। विदेशी कंपनियों के लिए निर्बाध रास्ता खोल देने से उनकी मुश्किलें और बढ़ेंगी। ऐसे में विदेशी के साथ-साथ देसी कंपनियों के लिए जगह बनाने के व्यावहारिक उपाय तलाशने की अपेक्षा स्वाभाविक है। रहा है कि इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की दर में बढ़ोतरी होगी।
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