दांतारामगढ़ (सीकर): प्रदेश के सबसे कद्दावर कांग्रेस नेता पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नारायण सिंह अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने की तैयारी मे तो है लेकिन किसे सौंपा जाये? यह सिंह के लिये अभी तक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। जहां एक तरफ पुत्र मोह बना हुआ है वही राजनीति मे काबिलियत रखनी वाली पुत्रवधु। दोनों मे एक का चयन कर जनता के बीच लाना सिंह के लिए कठिन कार्य बना हुआ है। सिंह अपने राजनीतिक कैरियर मे कभी फैसला लेने कभी हिचकिचाहट नही हुई लेकिन इस बार उलझन मे नजर आ रहे है।
हाल ही मे एक कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया था जिसमे खूद के चुनाव लडने मे तो असमर्थता व्यक्त की लेकिन उत्तराधिकारी नही बता पाये। राजनीतिक विशलेषण किया जाये तो पुत्रवधू रीटा सिंह का जिला प्रमुख के रूप पांच वर्ष का कार्यकाल शानदार ही नही रहा वरन एक कुशल नेतृत्व का परिचय भी दिया तथा इसके बाद भी कार्यकर्ताओं मे लगातार सक्रियता रीटा सिंह के वजूद को आगे बढाता है वहीं सिंह की विरासत को आगे ले जाने मे सक्षम दिखाई देती है वही दूसरी ओर पुत्र वीरेन्द्र सिंह प्रधान रहने के बाद जनता के बीच मे जूडे नही रहे और पिछले पंचायत समिति चुनाव मे प्रधान पद के दावेदार होने के बाद भी एक युवा भाजपाई से चुनाव हारकर किरकिरी करा चुके है। लेकिन इसके बाद एक वर्ष अब लगातार कार्यकर्ताओं के बीच सक्रिय नजर आ रहे वीरेन्द्र सिंह हरी झंडी के इंतजार मे है।
इतना तो तय है कि नारायण सिंह जिसे भी चेहरा बनायेंगे कांग्रेसी कार्यकर्ता उसके साथ जी जान से लग जायेंगे। लेकिन सिंह को एक डर सताये जा रहा है कि मोह मे अगर फैसला गलत साबित हुआ तो प्रदेश की राजनीति मे सिंह का दबदबा खत्म हो जायेगा।
Citizen Reporter: Surendra Burdak |
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