शिक्षा, चिकित्सा और राजनीति तीनों सेवा के क्षेत्र हैं किन्तु वर्तमान दौर में तीनों ने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया है। निजी शिक्षण संस्थानों के दवाब के चलते सरकार न तो निजी संस्थानों पर अंकुश लगा सकी है और न ही फीस एक्ट प्रभावी हो सका है। सरकार ने 1 जून 2010 को एक आदेश निकाला जिसमें कुल 33 प्रतिशत से अधिक फीस बढ़ाने पर रोक लगाने की बात कही गयी। निजी विद्यालयों ने आदेश की अवहेलना की। 2013 में गहलोत सरकार ने तमिलनाडु पैटर्न पर राजस्थान विद्यालय अधिनियम को लागू किया। 2013 दिसंबर में सरकार बदल गयी और अधिनियम ठंडे बस्ती में चला गया। मई 2016 में भाजपा सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की तर्ज पर राजस्थान विद्यालय फीस विनिमय एक्ट 2016 लागू किया। किन्तु अभी तक फीस कमेटी गठित नहीं हुई है।
अधिकांश बड़े निजी विद्यालय राजनेताओं व उनके चाटुकारों के है, इसलिए सरकार के ये प्रयास असफल हो रहे हैं। जब भी सरकार कोई ठोस कदम उठाती है तो इन शिक्षा माफियाओं के दबाव में अपने कदम पीछे खींच लेती है। वसुंधरा सरकार की शिक्षा नीति स्पष्ट नहीं है। इसके चलते निजी विद्यालयों में गला काट प्रतिस्पर्धा चल रही है। किसी भी विद्यालय ने फीस कमेटी गठित नहीं की है। अगर की है तो फ़र्जी है। कानून को सख़्ती से लागू करने में जिला शिक्षा अधिकारी पूरी तरह से असफल सिद्ध हुए । उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। अभिभावक भी पूरे तरह से निष्किय दिखे। अभिभावकों ने न तो सरकार से और न विद्यालयों के संचालक से जवाब मांगा।
सीकर एज्युकेशन हब है। यहाँ भी लूट के अड्डे बने हुए है। राजनीति में अव्वल और समाज सेवा में अग्रणी इस जनपद के किसी भी ने नेता और सामाजिक कार्यकर्ता ने निजी संस्थानों और सरकार के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं किया ? किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता ने इन संस्थानों से कमेटी की जानकारी क्यों नहीं मांगी? यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है। क्या मेरे इस सवाल का जवाब मिलेगा ?
जब निजी संस्थानों पर कार्रवाई होती है तो उसके विरोध में निजी शिक्षण संस्थान संघ लामबद्ध होकर सरकार को झुका देता है। सरकार को चाहिए की निजी शिक्षण संस्थानों के संचालकों पर सख्ती से कार्रवाई करें। आम आदमी जेब काटने वाले इन बेलगाम घोड़ों पर कानून का चाबुक लगाएँ। क्या सरकार इतनी पंगु है कि जनहित के पहले को कड़ाई से लागू नहीं कर सकती ? जनमानस इन लूट केअड्डडों के विरुद्ध क्यों संगठित नहीं होता। जो संगठित नहीं है वही शोषित है। अपने अधिकार और हों के लिए आम आदमी को संगठित होने की आवश्यकता है।
राजस्थान सरकार को दिल्ली प्रदेश से सीख लेनी चाहिए। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नियमों की अवहेलना करने वाले एक निजी चिकित्सालय की मान्यता रद्द कर दी। क्या राजस्थान सरकार निजी संस्थानों के प्रति कठोर कदम नहीं उठा सकती ?
सरकार ने एक तुगलकी फ़रमान जारी कर राज्य के तीन सौ सरकारी स्कूल को निजी हाथों में देने का फैसला कर रही है। इससे 10 हज़ार पद रिक्त हो जाएंगे और 150000 विद्यार्थियों प्रभावित होंगे। सरकार की मंशा बेरोज़गारों को रोजगार देना नहीं है।
अंत में रामधारी सिंह 'दिनकर' की इन पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ -
समर शेष है नहीं काल का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ है समय लिखेरा उसका भी अपराध।।
अधिकांश बड़े निजी विद्यालय राजनेताओं व उनके चाटुकारों के है, इसलिए सरकार के ये प्रयास असफल हो रहे हैं। जब भी सरकार कोई ठोस कदम उठाती है तो इन शिक्षा माफियाओं के दबाव में अपने कदम पीछे खींच लेती है। वसुंधरा सरकार की शिक्षा नीति स्पष्ट नहीं है। इसके चलते निजी विद्यालयों में गला काट प्रतिस्पर्धा चल रही है। किसी भी विद्यालय ने फीस कमेटी गठित नहीं की है। अगर की है तो फ़र्जी है। कानून को सख़्ती से लागू करने में जिला शिक्षा अधिकारी पूरी तरह से असफल सिद्ध हुए । उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। अभिभावक भी पूरे तरह से निष्किय दिखे। अभिभावकों ने न तो सरकार से और न विद्यालयों के संचालक से जवाब मांगा।
सीकर एज्युकेशन हब है। यहाँ भी लूट के अड्डे बने हुए है। राजनीति में अव्वल और समाज सेवा में अग्रणी इस जनपद के किसी भी ने नेता और सामाजिक कार्यकर्ता ने निजी संस्थानों और सरकार के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं किया ? किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता ने इन संस्थानों से कमेटी की जानकारी क्यों नहीं मांगी? यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है। क्या मेरे इस सवाल का जवाब मिलेगा ?
जब निजी संस्थानों पर कार्रवाई होती है तो उसके विरोध में निजी शिक्षण संस्थान संघ लामबद्ध होकर सरकार को झुका देता है। सरकार को चाहिए की निजी शिक्षण संस्थानों के संचालकों पर सख्ती से कार्रवाई करें। आम आदमी जेब काटने वाले इन बेलगाम घोड़ों पर कानून का चाबुक लगाएँ। क्या सरकार इतनी पंगु है कि जनहित के पहले को कड़ाई से लागू नहीं कर सकती ? जनमानस इन लूट केअड्डडों के विरुद्ध क्यों संगठित नहीं होता। जो संगठित नहीं है वही शोषित है। अपने अधिकार और हों के लिए आम आदमी को संगठित होने की आवश्यकता है।
राजस्थान सरकार को दिल्ली प्रदेश से सीख लेनी चाहिए। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नियमों की अवहेलना करने वाले एक निजी चिकित्सालय की मान्यता रद्द कर दी। क्या राजस्थान सरकार निजी संस्थानों के प्रति कठोर कदम नहीं उठा सकती ?
सरकार ने एक तुगलकी फ़रमान जारी कर राज्य के तीन सौ सरकारी स्कूल को निजी हाथों में देने का फैसला कर रही है। इससे 10 हज़ार पद रिक्त हो जाएंगे और 150000 विद्यार्थियों प्रभावित होंगे। सरकार की मंशा बेरोज़गारों को रोजगार देना नहीं है।
अंत में रामधारी सिंह 'दिनकर' की इन पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ -
समर शेष है नहीं काल का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ है समय लिखेरा उसका भी अपराध।।
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