संजय लीला भंसाली की फ़िल्म पद्मावती, इतिहास और कल्पना तथा करणी सेना
पटकथा लेखक,निर्माता,संगीत निर्देशक पद्मश्री संजय लीला भंसाली बॉलीवुड में नामचीन निर्माता निर्देशक है | उनकी फ़िल्में संवाद,संगीत और कथ्य की दृष्टि से उच्च कोटि की है | देवदास,जोधा अकबर और बाजीराव बॉलीवुड की कालजयी फ़िल्में है |
जयपुर स्थित जयगढ़ में करणी सेना ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट की | करनी सेना ने धमकी दी है कि इस फिल्म को सिनेमा घरों में चलने नहीं देंगे। करणी सेना का आरोप है कि भंसाली अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के बीच प्रेमिल दृश्य प्रस्तुत कर इतिहास को तोड़ मरोड़कर राजपूती गौरव को कलंकित कर रहे हैं । करणी सेना ने भंसाली को विवादित विषय पर संवाद हेतु बुलाया | भंसाली ने कहा-"ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी,ऐसा मैं विश्वास दिलाता हूं | "भंसाली के आने पर करणी सेना ने उनके बाल नोंचे और थप्पड़ मारे | हालांकि प्रजातन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। करणी सेना के नेता समय -समय पर असंयत शब्दावली का प्रयोग कर नवंबर की हलकी -हलकी ठंड के बीच गरमाहट पैदा कर रहे हैं। राजपूत स्वाभिमानी,साहसी,वचनबद्ध और शरणदाता होता है | इन्हीं विशेषताओं से उसका चरित्र गढ़ा जता है | सामान्यत: हिन्दू कट्टर साम्प्रदायिक नहीं होता है ,पर कट्टर जातिवादी होता है |
अतीत की घटनाओं को क्रमबद्धता देकर कारण और प्रभाव के क्रम से रखना इतिहास है | कारण -कार्य शृंखला में गुंथकर ही तथ्य ऐतिहासिक बनते हैं |
जायसी कृत पद्मावत की संपूर्ण आख्यायिका को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं | रत्नसेन की सिंहलदीप यात्रा से लेकर चितौड़ लौटने तक हम कथा का पूर्वाद्ध मान सकते हैं और राघव के निकल जाने से लेकर पद्मिनी के सती होने तक उत्तरार्द्ध | ध्यान देने की बात यह है पूर्वार्द्ध तो बि्ल्कुल कल्पित कहानी है और उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक आधार पर है |
अलाउद्दीन ने संवत् १३४६(सन् 1290 ) पर फरिश्ता के अनुसार सन् 1303 जो कि ठीक माना जाता है ) में फिर चढ़ाई की | इसी दूसरी चढ़ाई में राणा अपने ग्यारह पुत्रों सहित मारे गए | जब राणा के ग्यारह पुत्र मारे जा चुके थे और स्वयं राणा के युद्ध क्षेत्र में जाने की बारी आई तब पद्मिनी ने जौहर किया | कई सहस्र राजपूत ललनाओं के साथ पद्मिनी ने चित्तौड़गढ़ के उस गुप्त भूधरे में प्रवेश किया जहां सती स्त्रियों को गोद में लेने के लिए आग दहक रही थी |
मलिक मुहम्मद जायसी कृत जायसी ने इस घटना के दो सौ सैंतीस साल बाद सन् 1540 में 'पद्मावत' नामक ग्रंथ लिखा। जिसमें रतनसेन और चंपावती की पुत्री पद्मावती और रतनसेन के विवाह, अलाउद्दीन का आक्रमण एवं पद्मावती के जौहर का वर्णन है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार प्रेमपथिक रत्नसेन में सच्चे साधक भक्त का स्वरूप दिखाया गया है |पद्मिनी ही ईश्वर से मिलाने वाला ज्ञान या बुद्धि है अथवा चैतन्य स्वरूप परमात्मा है,जिसकी प्राप्ति का मार्ग बतलाने वाला सूआ सद्गुरु है | उस मार्ग में अग्रसर होने से रोकने वाली नागमती संसार का जंजाल है | तनरूपी चितौड़ का राजा मन है | राघव चेतन शैतान है जो प्रेम का ठीक मार्ग न बताकर इधर-उधर भटकाता है | माया में पड़े हुए सुलतान अलाउद्दीन को मायारूप ही समझना चाहिए |"
इतिहास में कहीं भी पद्मावती और खिलजी के बीच संवाद का उल्लेख नहीं है | खिलजी पद्मावती से कभी मुख़ातिब नहीं हुआ | फिर भला नृत्य के लिए कहां अवकाश था | अपनी कथा को काव्योपयोगी स्वरूप देने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं के ब्यौरों में कुछ फेरफार करने का अधिकार कवि को बराबर रहता है | जायसी ने भी इस अधिकार का उपयोग कई स्थानों पर किया है | फ़िल्म में भी इतिहास और कल्पनाओं का मणिकांचन संयोग होता है | उसका उद्देश्य इतिहास ,संदेश के अलावा मनोरंजन भी है | मगर इन सब के बावजूद इतिहास को झुठलाकर फ़िल्म संसार में प्रवेश करना न्याय संगत नहीं है । फ़िल्म में स्वप्न दृश्य को लेकर भारी विवाद है हालांकि भंसाली इस तरह के किसी भी दृश्य के फिल्मांकन को नकार रहे हैं।
संजय लीला भंसाली एक बार भी पद्मावत को पढ़ लेते तो वे उस उदात्त चरित्र वाली पद्मावती के व्यक्तित्व से अभिभूत हुए बिना नहीं रहते। उसके बाद वे पद्मावती केे व्यक्तित्व को दूषित करने वाले स्वप्न -चित्र न गढ़ते ।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि फ़िल्म को अभी सेंसर ने पास नहीं किया है। अतः रिलीज़ होने से पहले विरोध ज़ायज नहीं हैं । सच्चाई क्या है ? भंसाली की फ़िल्म 'पद्मावती' पर सेंसर की क्या प्रतिक्रिया रहती हैं ? यह भविष्य के गर्भ में है।
पटकथा लेखक,निर्माता,संगीत निर्देशक पद्मश्री संजय लीला भंसाली बॉलीवुड में नामचीन निर्माता निर्देशक है | उनकी फ़िल्में संवाद,संगीत और कथ्य की दृष्टि से उच्च कोटि की है | देवदास,जोधा अकबर और बाजीराव बॉलीवुड की कालजयी फ़िल्में है |
जयपुर स्थित जयगढ़ में करणी सेना ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट की | करनी सेना ने धमकी दी है कि इस फिल्म को सिनेमा घरों में चलने नहीं देंगे। करणी सेना का आरोप है कि भंसाली अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के बीच प्रेमिल दृश्य प्रस्तुत कर इतिहास को तोड़ मरोड़कर राजपूती गौरव को कलंकित कर रहे हैं । करणी सेना ने भंसाली को विवादित विषय पर संवाद हेतु बुलाया | भंसाली ने कहा-"ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी,ऐसा मैं विश्वास दिलाता हूं | "भंसाली के आने पर करणी सेना ने उनके बाल नोंचे और थप्पड़ मारे | हालांकि प्रजातन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। करणी सेना के नेता समय -समय पर असंयत शब्दावली का प्रयोग कर नवंबर की हलकी -हलकी ठंड के बीच गरमाहट पैदा कर रहे हैं। राजपूत स्वाभिमानी,साहसी,वचनबद्ध और शरणदाता होता है | इन्हीं विशेषताओं से उसका चरित्र गढ़ा जता है | सामान्यत: हिन्दू कट्टर साम्प्रदायिक नहीं होता है ,पर कट्टर जातिवादी होता है |
अतीत की घटनाओं को क्रमबद्धता देकर कारण और प्रभाव के क्रम से रखना इतिहास है | कारण -कार्य शृंखला में गुंथकर ही तथ्य ऐतिहासिक बनते हैं |
जायसी कृत पद्मावत की संपूर्ण आख्यायिका को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं | रत्नसेन की सिंहलदीप यात्रा से लेकर चितौड़ लौटने तक हम कथा का पूर्वाद्ध मान सकते हैं और राघव के निकल जाने से लेकर पद्मिनी के सती होने तक उत्तरार्द्ध | ध्यान देने की बात यह है पूर्वार्द्ध तो बि्ल्कुल कल्पित कहानी है और उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक आधार पर है |
अलाउद्दीन ने संवत् १३४६(सन् 1290 ) पर फरिश्ता के अनुसार सन् 1303 जो कि ठीक माना जाता है ) में फिर चढ़ाई की | इसी दूसरी चढ़ाई में राणा अपने ग्यारह पुत्रों सहित मारे गए | जब राणा के ग्यारह पुत्र मारे जा चुके थे और स्वयं राणा के युद्ध क्षेत्र में जाने की बारी आई तब पद्मिनी ने जौहर किया | कई सहस्र राजपूत ललनाओं के साथ पद्मिनी ने चित्तौड़गढ़ के उस गुप्त भूधरे में प्रवेश किया जहां सती स्त्रियों को गोद में लेने के लिए आग दहक रही थी |
मलिक मुहम्मद जायसी कृत जायसी ने इस घटना के दो सौ सैंतीस साल बाद सन् 1540 में 'पद्मावत' नामक ग्रंथ लिखा। जिसमें रतनसेन और चंपावती की पुत्री पद्मावती और रतनसेन के विवाह, अलाउद्दीन का आक्रमण एवं पद्मावती के जौहर का वर्णन है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार प्रेमपथिक रत्नसेन में सच्चे साधक भक्त का स्वरूप दिखाया गया है |पद्मिनी ही ईश्वर से मिलाने वाला ज्ञान या बुद्धि है अथवा चैतन्य स्वरूप परमात्मा है,जिसकी प्राप्ति का मार्ग बतलाने वाला सूआ सद्गुरु है | उस मार्ग में अग्रसर होने से रोकने वाली नागमती संसार का जंजाल है | तनरूपी चितौड़ का राजा मन है | राघव चेतन शैतान है जो प्रेम का ठीक मार्ग न बताकर इधर-उधर भटकाता है | माया में पड़े हुए सुलतान अलाउद्दीन को मायारूप ही समझना चाहिए |"
इतिहास में कहीं भी पद्मावती और खिलजी के बीच संवाद का उल्लेख नहीं है | खिलजी पद्मावती से कभी मुख़ातिब नहीं हुआ | फिर भला नृत्य के लिए कहां अवकाश था | अपनी कथा को काव्योपयोगी स्वरूप देने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं के ब्यौरों में कुछ फेरफार करने का अधिकार कवि को बराबर रहता है | जायसी ने भी इस अधिकार का उपयोग कई स्थानों पर किया है | फ़िल्म में भी इतिहास और कल्पनाओं का मणिकांचन संयोग होता है | उसका उद्देश्य इतिहास ,संदेश के अलावा मनोरंजन भी है | मगर इन सब के बावजूद इतिहास को झुठलाकर फ़िल्म संसार में प्रवेश करना न्याय संगत नहीं है । फ़िल्म में स्वप्न दृश्य को लेकर भारी विवाद है हालांकि भंसाली इस तरह के किसी भी दृश्य के फिल्मांकन को नकार रहे हैं।
संजय लीला भंसाली एक बार भी पद्मावत को पढ़ लेते तो वे उस उदात्त चरित्र वाली पद्मावती के व्यक्तित्व से अभिभूत हुए बिना नहीं रहते। उसके बाद वे पद्मावती केे व्यक्तित्व को दूषित करने वाले स्वप्न -चित्र न गढ़ते ।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि फ़िल्म को अभी सेंसर ने पास नहीं किया है। अतः रिलीज़ होने से पहले विरोध ज़ायज नहीं हैं । सच्चाई क्या है ? भंसाली की फ़िल्म 'पद्मावती' पर सेंसर की क्या प्रतिक्रिया रहती हैं ? यह भविष्य के गर्भ में है।
एक टिप्पणी भेजें