अमृत लाल वेगङ का यात्रा वृतांत"सौन्दर्य की नदी नर्मदा" पढ़ा। यात्रा वृतांत बहुत ही सरस है। लेखक अपनी पत्नी की अंगूठी बेचकर यात्रा करता है। देशाटन आदमी को सरस बना देता है। मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा में अस्सी मील के झाङी नामक ख़तरनाक क्षेत्र को लेखक अदम्य साहस के कारण पार कर जाता है। गुजरात प्रांत के रहने वाले शिक्षक की यद्यपि मातृभाषा गुजराती है किन्तु हिन्दी भाषी पण्डित ,मराठी साठे और सींधी भाषी हल्दानी के साथ मिलकर अपनी यात्राएं करता है। जबलपुर से अमरकंटक और जबलपुर से विमलेश्वर तक की 1312 किलो मीटर की यात्रा उत्साह के दम पर करता है। नर्मदा नदी के प्रति लेखक का अपार स्नेह है। लेखक लिखते हैं कि ज्यों ज्यों जीवन का सूर्यास्त निकट आता है;अधिकांश चीज़े छूटती जाती हैं और यात्री अंतिम यात्रा के लिए हल्का होता जाता है। आगे लिखते है -"पहले आनंद की हर चीज़ बाहर थी-नदी ,पहाङ,जंगल ,तीर्थ,फूल ,पक्षी
। अब सब कुछ अंदर है-टीवी के डिब्बे में!टीवी ने हमें घर घुसरा और निष्क्रिय बना दिया है। और बदले में आनन्द भी नहीं दिया-आनन्द का छिलका पकङा दिया।
। अब सब कुछ अंदर है-टीवी के डिब्बे में!टीवी ने हमें घर घुसरा और निष्क्रिय बना दिया है। और बदले में आनन्द भी नहीं दिया-आनन्द का छिलका पकङा दिया।
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