अभी कुछ ही समय पहले प्याज इतने सस्ते थे कि कोई खरीदने को भी तैयार नहीं था और अचानक से प्याज ने ऐसी पलटी मारी है कि कई परिवारों के खाने की थाली से प्याज नदारद हो गया है। अगर फसल खराब होती है तो किसान को कुछ मिलता नहीं और अगर अच्छी होती है तो फसल का कुछ मिलता नहीं। असल बात यह है कि किसान तो पूरे प्रदेश मे छितराए हुए होते हैं जबकि व्यापारी एक ही जगह अड्डा जमाए बैठे होते हैं तो इसके चलते व्यापारियों में एकजुटता बनाकर भाव कम करने की चलाकी का किसानों के पास कोई जवाब नहीं होता। प्रदेश भर में हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं मगर मंडी में बैठा व्यापारी उससे अलग है
मेहनत किसान की होती है और आत्महत्या भी किसान की होती है व्यापारी तो सुबह नहा धोकर घर से चलता है दूसरे की फसल कम दामों पर खरीदता है और अपनी आडत मिलाकर नोट गिनता रहता है। आजादी के बाद से ही अभी तक भी कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बनी है जो ऐसी विसंगति को दूर कर सके और इसका खामियाजा किसान और उसके परिवार भुगत रहे हैं। सरकार इसमें क्या करे, किसान उसको वोट देता है और व्यापारी वोट को खरीदने के लिए चंदा। पर यह सब ऐसे ही चलता रहता है बीच-बीच में कुछ छुटभैए नेता आते हैं जो किसानों को संगठित करते हैं एक दो मांगे मनवा लेते हैं पर अपनी नेतागिरी चमका लेते हैं। अभी तक किसी भी नेता ने कोई स्थाई व्यवस्था के बारे में कोई पुख्ता कदम नहीं उठाए हैं ना ही किसी पुख्ता कदम की कोई सिफारिश करी है। सच तो यह है कि किसान हो या किसानों के छुटभैए नेता किसी में भी एक दायरे की सीमा से बाहर जाकर सोचने का माद्दा ही नहीं है। कर्ज माफी एक झुनझुना है जिससे किसान का कोई फायदा नहीं होने वाला, इसका बोझ तो किसान ने पहले ही अपने सर ले रखा है तो अगर इसके माफी मिल जाती है तो सिर्फ अपने सर लिए हुए बोझे को कुछ हद तक कम कर पाएगा मगर फिर भी अपने पैरों पर खड़े होने की क्षमता किसान के पास में नहीं आएगी। छुटभैये नेता जो चुनाव हारकर बेरोजगार बैठे हैं वो वापस चुनाव जीतने के लिए जी जान एक कर रहे हैं और चुनाव जीतते ही कहाँ गायब होंगे उसका पता अगले चुनाव में ही पड़ेगा
मोदी सरकार जब सत्ता में आई नहीं थी उस समय बहुत बड़ी-बड़ी डींगे मारी जा रही थी और मोदी जी कह रहे थे कि किसान को फसल की पूरी लागत का डेढ़ गुना के बराबर समर्थन मूल्य मिलेगा जिसमें मजदूरी तक शामिल होगी। वैसे मोदी जी ने डेढ गुने की बात जरूर कही थी मगर यह नहीं बताया था कि ऐसा कब तक हो पाएगा इसलिए मोदी जी को क्लीन चिट देने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। अगर कर्जे की ही बात कर लें तो उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए उन्होंने कर्जा माफी की बात कही थी | चलिए आपके साथ हम भी देखते हैं कि क्या कर्ज माफी हो पाती है और अगर हो भी पाती है तो दोबारा से कर्ज में डूबने में किसान को कितना समय लगेगा।
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